Uttarkashi Tunnel मे आख़िर कैसे फ़से मजदुर

Uttarkashi Tunnel: सिलक्यारा की सुरंग में गुजरे थे कई दिन वहां फंसे श्रमिकों उनके स्वजन और बचाव एजेंसियों के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं रहे। राहत व बचाव कार्य शुरू हुआ तो अड़चने आने लगीं। सुरंग के भीतर से ही निकासी सुरंग बनाने का कार्य शुरू किया गया तो उम्मीदों की किरण दिखने लगी। मजदूरों को बचाने के लिए रात भर रेस्क्यू जारी रहा था।

सिलक्यारा की सुरंग में गुजरे कई दिन वहां फंसे श्रमिकों, उनके स्वजन और बचाव एजेंसियों के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं रहे। राहत व बचाव कार्य शुरू हुआ तो अड़चने आने लगीं। कभी पाइप आगे नहीं बढ़ा, तो कभी लोहे के टुकड़ों ने राह रोकी। जब बचाव का समय निकट आया, तो उम्मीद से अधिक समय लगने लगा। अभी भी ये 41 मजदूर सुरंग के बीच फंसे हैं। गुरुवार को इन मजदूरों के निकलने की उम्मीद तो थी, लेकिन रेस्क्यू में आ रही अचड़चन से अभी और इंतजार करना पड़ रहा है।

Uttarkashi Tunnel: How did the tunnel collapse?

Uttarkashi Tunnel collapse

Uttarkashi Tunnel collapse: चारधाम महामार्ग विकास परियोजना में निर्माणाधीन सिलक्यारा सुरंग में एस्केप पैसेज का निर्माण प्रस्तावित था। इस पूरी परियोजना का नाम ही सिलक्यारा बैंड-बड़कोट टनल विद एस्केप पैसेज रखा गया, लेकिन इसके निर्माण की ओर ध्यान नहीं दिया गया। यदि यहां एस्केप पैसेज का निर्माण किया गया होता तो सुरंग के अंदर भूस्खलन के चलते मजदूर नहीं फंसते और बाहर निकल आते।

दरअसल, सुरंगों में किसी भी तरह की आपातकालीन स्थितियों में बचाव के लिए एस्केप पैसेज या टनल का निर्माण किया जाता है। यह मुख्य सुरंग से छोटी होती है। इसका इस्तेमाल केवल आपातकालीन परिस्थितियों में ही होता है। यहां चारधाम महामार्ग परियोजना में निर्माणाधीन राज्य की सबसे लंबी डबल लेन 4.5 किमी लंबी सिलक्यारा से पोलगांव सुरंग में भी एस्केप पैसेज का निर्माण प्रस्तावित था।

एनएचआईडीसीएल की ओर से बनाई जा रही इस सुरंग में इसके निर्माण की ओर ध्यान नहीं दिया गया। सुरंग के बीचोंबीच एक दीवार बनाई जा रही थी, जिसमें हर 500 मीटर पर एक लेन से दूसरी लेन में जाने के लिए रास्ता दिया गया था। कार्यदायी संस्था एनएचआईडीसीएल के अधिकारी इसे ही एस्केप पैसेज बता रहे थे। उनका कहना है कि यदि एक लेन में कोई दिक्कत होगी, तो दूसरे लेन में आसानी से जाया जा सकेगा।

सिलक्यारा सुरंग में संवेदनशील हिस्से थे। इनमें पहला सिलक्यारा वाले मुहाने से 200 मीटर के पास तो दूसरा 2000 से 2100 मीटर के पास था। इनमें दूसरे हिस्से का तो उपचार किया गया, लेकिन सिलक्यारा वाले पहले संवेदनशील हिस्से को बिना उपचार छोड़ दिया गया। जिस हिस्से में भूस्खलन से मजदूर फंसे, यह वहीं हिस्सा है। इसका समय पर उपचार किया गया होता तो भूस्खलन के खतरे को कम किया जा सकता था।

Uttarkashi Tunnel: Hindrances

Uttarkashi Tunnel: Hindrances

Uttarkashi Tunnel: दिवाली के दिन से उत्तरकाशी की निर्माणाधीन सुरंग में हुए हादसे में फंसे 41 श्रमिक के दिनों बाद बाहर आये थे। उत्तरकाशी सुरंग बचाव पर पीएमओ के पूर्व सलाहकार भास्कर खुल्बे ने कहा कि अभी स्थिति काफी ठीक है। हमें दो चीज़ों पर काम करना था।

सबसे पहले, हमें मशीन के प्लेटफॉर्म का पुनर्गठन कर दिया और इसके बाद पाइप पर जो थोड़ा दबाव था उसे काटने का काम चल रहा था ये पूरा हो जाने के बाद हमने ऑगर ड्रिलिंग की प्रक्रिया शुरू कर दी थी। पार्सन्स कंपनी ने ग्राउंड पेनेट्रेशन रडार से जो अध्ययन किया है उसे हमें पता चला कि अगले 5 मीटर तक कोई धातु अवरोध नहीं था। इस हिसाब से अगर ड्रिल मशीन ठीक चली तो पाइप सुरंग में फंसे मजदूरों के बेहद करीब पहुंच गया था।

उत्तरकाशी के सिलक्यारा सुरंग में फंसे मजदूरों को निकाले जाने के बाद चिकित्सीय सुविधा देने के लिए एम्स ने भी पूरी तैयारियां कर रखी थी। एम्स प्रशासन का कहना था कि यदि मजदूरों को एम्स भेजा गया तो उन्हें बेहतर चिकित्सीय सुविधा प्रदान की जाएगी।

ड्रिलिंग के दौरान कंपन तेज होने से मशीन का बेस हिला था। बचाव अभियान में इस्तेमाल की जा रही ड्रोन तकनीक पर स्क्वाड्रन इंफ्रा माइनिंग प्राइवेट लिमिटेड के एमडी और सीईओ सिरिएक जोसेफ कहा था कि यह (ड्रोन) नवीनतम तकनीकों में से एक है जो सुरंग के अंदर जा सकती है। जिन क्षेत्रों में जीपीएस काम नहीं करता इसकी पहुंच वहां भी है।

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